छत्‍तीसगढ़ी गज़ल

घर-आँगन मा दिया बरे, तब मतलब हे।
अँधियारी के मुँहू टरे, तब मतलब हे।।

मिहनत के रोटी हर होथे भाग बरोबर,
जम्मो मनखे धीरज धरे, तब मतलब हे।

दुनिया कहिथे ओ राजा बड़ सुग्घर हे,
दुखिया मन के दुख हरे, तब मतलब हे।

नेत-नियाव के बात जानबे तब तो बनही
अतलंग मन के बुध जरे, तब मतलब हे।

सबके मन मा हावै दुविधा ‘बरस’ सुन ले,
सब के मन ले फूल झरे, तब मतलब हे।

बड़=बहुत;नेत-नियाव =नीति, अतलंग=उपद्रवी,
बुध=बुद्धि।

बल्‍दाउ राम साहू
[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]


Related posts

One Thought to “छत्‍तीसगढ़ी गज़ल”

  1. केजवा राम साहू / तेजनाथ

    बहुत बढ़िया रचना। बधाई हो साहू जी

Comments are closed.